मध्यप्रदेश में बाल विवाह रोकथाम के लिये कई महत्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं। इसमें मुख्यमंत्री लाड़ली लक्ष्मी योजना की अहम भूमिका है। इस योजना का प्रभाव यह है कि समाज में बेटियों के प्रति नज़रिया बदल रहा है। लोग अब अपनी बेटियों की शिक्षा और कल्याण को प्राथमिकता देने लगे हैं। यह बाल विवाह को रोकने के लिये एक सकारात्मक कदम साबित हो रहा है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के अनुसार वर्ष 2019-21 में मध्यप्रदेश में 20 से 24 वर्ष की महिलाओं में से 18 वर्ष से पहले विवाह की दर 23.1 प्रतिशत थी। यह दर पिछले वर्ष की तुलना में कम हुई है। एनएफएचएस-4 में वर्ष 2015-16 के दौरान यह दर 32.4 प्रतिशत थी। इस कमी का श्रेय विभिन्न शासकीय योजनाओं और जागरूकता कार्यक्रमों को जाता है।
प्रदेश में बाल विवाह न हो, इसके लिये योजना में प्रारंभ से ही यह प्रावधान है कि बालिका के 21 वर्ष पूर्ण होने पर दिया जाने वाला लाभ उस स्थिति में देय होगा, जब बालिका का विवाह 18 वर्ष से पूर्व न हुआ हो। मुख्यमंत्री लाड़ली लक्ष्मी योजना प्रारंभ करने का मुख्य उद्देश्य लिंगानुपात में सुधार, बाल विवाह की रोकथाम, बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन और बालिकाओं के प्रति समाज के व्यवहार में परिवर्तन को प्रोत्साहित करना था। योजना में बालिकाओं की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिये छात्रवृत्ति के रूप में कक्षा-6वीं में 2 हजार रुपये, कक्षा-90वीं में 4 हजार, कक्षा-11वीं एवं 12वीं में 6-6 हजार की आर्थिक सहायता का प्रावधान है। बालिकाओं की उच्च शिक्षा सुनिश्चित हो सके, इसके लिये 12वीं कक्षा के बाद व्यावसायिक एवं स्नातक पाठ्यक्रम में शिक्षा प्राप्त करने के लिये 25 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दिये जाने का प्रावधान है।
लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजनाओं के कारण बालिकाओं का स्कूल में अधिक समय तक रहना संभव हुआ है। देर से विवाह के कारण माध्यमिक शिक्षा में नामांकन में वृद्धि हुई है। विवाह और मातृत्व में देरी से, किशोर गर्भावस्था के जोखिमों में कमी आयी है, जो राज्य में मातृ और शिशु स्वास्थ्य में सुधार लाने में सहायक है।