भोपाल के 126 कब्रिस्तान अतिक्रमणग्रस्त

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भोपाल, मध्य प्रदेश: शांत कब्रों की नगरी भोपाल, सदियों से अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जानी जाती रही है। लेकिन अब, इस शहर के हृदय में एक गहरा घाव रिस रहा है। एक चौंकाने वाली और हृदयविदारक घटनाक्रम में, यह खुलासा हुआ है कि भोपाल के 126 कब्रिस्तान अतिक्रमण की आग में जल रहे हैं। वक्फ बोर्ड की एक गोपनीय जांच ने एक ऐसी सच्चाई उजागर की है, जिसने न केवल मुस्लिम समुदाय को स्तब्ध कर दिया है, बल्कि शहर की आत्मा को भी झकझोर कर रख दिया है। जांच के अनुसार, कभी 125 की संख्या में मौजूद कब्रिस्तानों में से, अब मुश्किल से 24 ही अपनी पहचान बचा पाए हैं, जबकि 101 कब्रिस्तान या तो पूरी तरह से जमींदोज कर दिए गए हैं या उन पर अवैध बस्तियां फल-फूल रही हैं। यह सिर्फ जमीन का अतिक्रमण नहीं है, बल्कि यह मृतकों की शांति का अतिक्रमण है, सदियों पुरानी विरासत का अतिक्रमण है, और भविष्य में अपने प्रियजनों को सम्मानपूर्वक दफनाने के अधिकार का अतिक्रमण है। इस अतिक्रमण की भयावह तस्वीर भोपाल के विभिन्न कोनों में बिखरी पड़ी है। कभी जहां कब्रों पर फातिहा पढ़ी जाती थी, वहां अब कंक्रीट के जंगल खड़े हैं। जांच रिपोर्ट में सामने आया है कि कब्रिस्तानों की बेशकीमती जमीनों को सुनियोजित तरीके से खुर्द-बुर्द किया गया। भू-माफियाओं और कुछ स्वार्थी तत्वों ने मिलकर इन जमीनों पर प्लॉटिंग की और उन्हें मोटी रकम में बेच डाला। रातों-रात कब्रों को मिटा दिया गया, उनकी निशानियों को हमेशा के लिए दफन कर दिया गया, और उनकी जगह आलीशान घर और व्यावसायिक प्रतिष्ठान खड़े हो गए। यह मानवीय लालच का एक ऐसा क्रूर चेहरा है, जिसने मृतकों की गरिमा को भी तार-तार कर दिया है। भोपाल का ऐतिहासिक और सबसे बड़ा कब्रिस्तान, बड़ा बाग, जो अपने भीतर सदियों के इतिहास को समेटे हुए है, भी इस अतिक्रमण की काली छाया से मुक्त नहीं रह सका है। इस कब्रिस्तान में, जहां कभी शांति और सुकून का वास था, अब हर कब्र एक कराहती हुई कहानी बयां करती है। स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि अब यहां नए शवों को दफनाने के लिए जब कब्र खोदी जाती है, तो पुरानी कब्रों की ईंटें, कंकाल के अवशेष और मिट्टी में दफन इतिहास चीख-चीख कर अपनी दुर्दशा बयान करते हैं। यह स्थिति न केवल मृतकों के प्रति घोर अनादर है, बल्कि यह भी स्पष्ट संकेत है कि यदि अतिक्रमण को नहीं रोका गया, तो आने वाले दिनों में अपने प्रियजनों को दफनाने के लिए भी पवित्र जमीन नसीब नहीं होगी। भविष्य की यह चिंता आज हर भोपालवासी की आंखों में आंसू बनकर झलक रही है। इस हृदयविदारक स्थिति के खिलाफ अब भोपाल के मुस्लिम समुदाय की युवा पीढ़ी ने क्रांति का बिगुल फूंक दिया है। उन्होंने “मिट्टी मांगे कब्रिस्तान अभियान” के बैनर तले एक शक्तिशाली आंदोलन छेड़ दिया है। इन युवाओं की आवाज में आक्रोश है, पीड़ा है, और अपने पुरखों की विरासत को बचाने का दृढ़ संकल्प है। उनका कहना है कि यह सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं है, बल्कि यह उनकी पहचान है, उनकी आस्था का केंद्र है, और उनके मृतकों का अंतिम विश्राम स्थल है। वे सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं, रैलियां निकाल रहे हैं, और प्रशासन से न्याय की गुहार लगा रहे हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह इंसानियत की लड़ाई है, अपनी जड़ों को बचाने की लड़ाई है। वे हर उस दरवाजे को खटखटाने के लिए तैयार हैं, जहां से उन्हें न्याय की उम्मीद दिखती है। वक्फ बोर्ड की गोपनीय जांच में इतने सनसनीखेज खुलासे होने के बावजूद, स्थानीय प्रशासन की ओर से इस मामले में आश्चर्यजनक चुप्पी बनी हुई है। कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिख रही है, कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। क्या प्रशासन इन अतिक्रमणकारियों के आगे बेबस है? क्या कुछ निहित स्वार्थ इस मामले को दबाने की कोशिश कर रहे हैं? समुदाय के लोगों में इस चुप्पी को लेकर गहरा अविश्वास और गुस्सा है। उनका मानना है कि प्रशासन की यह उदासीनता अतिक्रमणकारियों को और बढ़ावा दे रही है और मृतकों के साथ अन्याय को और गहरा कर रही है। वे मांग कर रहे हैं कि प्रशासन अपनी आंखें खोले, सच्चाई को स्वीकार करे, और दोषियों के खिलाफ तत्काल और कठोर कार्रवाई करे। भोपाल के 126 कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण का यह संकट एक ऐसा नासूर बन गया है, जिसे अब और अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस समस्या से पार पाने के लिए मुस्लिम समुदाय को अपनी एकता को और मजबूत करना होगा और अपने अधिकारों के लिए पुरजोर संघर्ष करना होगा। “मिट्टी मांगे कब्रिस्तान अभियान” एक उम्मीद की किरण बनकर उभरा है, लेकिन इस अभियान को व्यापक जनसमर्थन और प्रशासन की सक्रियता की सख्त जरूरत है। यह सिर्फ कब्रिस्तानों को बचाने की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह कानून के शासन को स्थापित करने, मानवीय मूल्यों की रक्षा करने, और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक न्यायपूर्ण समाज सुनिश्चित करने की लड़ाई है। भोपाल के लोगों की निगाहें अब प्रशासन पर टिकी हैं, यह देखने के लिए कि क्या वे इस गंभीर मुद्दे पर जागते हैं और न्याय की रोशनी फैलाते हैं, या फिर अतिक्रमण की यह आग शहर की आत्मा को हमेशा के लिए जलाकर राख कर देगी।

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