
|| छतरपुर || जिला अस्पताल, जो कि बुंदेलखंड क्षेत्र का प्रमुख सरकारी स्वास्थ्य संस्थान है, वहां से एक दिल दहला देने वाला वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में एक 77 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति को अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारी द्वारा बाल पकड़कर जमीन पर घसीटते हुए देखा गया। घटना का वीडियो वायरल होते ही पूरे मध्य प्रदेश में हड़कंप मच गया और स्वास्थ्य मंत्रालय से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक इस पर सख्त प्रतिक्रिया दी गई। बुजुर्ग व्यक्ति, जिनकी पहचान उद्धव सिंह जोशी के रूप में हुई है, अपनी बीमार पत्नी के इलाज के लिए 17 अप्रैल की सुबह छतरपुर जिला अस्पताल पहुंचे थे।
गवाहों के अनुसार, अस्पताल की ओपीडी में इलाज में हो रही देरी से परेशान होकर बुजुर्ग ने डॉक्टर से सिर्फ इतना कहा –“डॉक्टर साहब, मेरा इलाज पहले कर दीजिए।” इसी बात पर डॉ. राजेश मिश्रा ने आपा खो दिया और बुजुर्ग को थप्पड़ मार दिया। यही नहीं, उन्होंने अस्पताल के रेड क्रॉस कर्मचारी राजेंद्र खरे के साथ मिलकर बुजुर्ग को बाल पकड़कर ज़मीन पर घसीटा और जबरन अस्पताल से बाहर फेंक दिया। इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि बुजुर्ग व्यक्ति रोते-बिलखते हुए डॉक्टर से माफी मांग रहे हैं लेकिन उन्हें बेकसूर घसीटा जा रहा है।
जनता के भारी विरोध और मीडिया कवरेज के बाद प्रशासन ने तुरंत एक्शन लिया:
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डॉ. राजेश मिश्रा को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त किया गया।
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सिविल सर्जन डॉ. जीएल अहिरवार को निलंबित कर दिया गया।
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रेड क्रॉस कर्मचारी राजेंद्र खरे को सेवा से हटाया गया।
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आरोपियों पर आईपीसी की गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज हुई है।
छतरपुर कलेक्टर सौरभ कुमार ने मीडिया को बताया: “यह घटना बेहद चिंताजनक है। हमने तत्काल कार्रवाई की है और सुनिश्चित करेंगे कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।”
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी ने भी ट्वीट कर लिखा: “डॉक्टरों को देवदूत कहा जाता है, लेकिन इस घटना ने चिकित्सा पेशे को कलंकित किया है। दोषियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।“
मीडिया से बात करते हुए पीड़ित बुजुर्ग बोले: “मैंने सिर्फ यह कहा कि इलाज कर दो, तब उन्होंने मुझे मारा और घसीटकर बाहर फेंक दिया। मैं अपमानित महसूस कर रहा हूं।” इस घटना को लेकर राजनीतिक माहौल भी गर्म हो गया है।
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कांग्रेस पार्टी ने इस घटना को ‘सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की असफलता’ बताया।
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आप और सपा नेताओं ने भी घटना की न्यायिक जांच की मांग की है।
मानवाधिकार आयोग और चिकित्सा संघ ने इस घटना की घोर निंदा की है और मांग की है कि अस्पतालों में संवेदनशीलता और मानवता को लेकर विशेष प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए। सरकारी अस्पताल, जो आम जनता के लिए अंतिम सहारा होते हैं, जब वहाँ इस तरह की घटनाएं घटें — तो यह न केवल चिकित्सा पेशे की नैतिकता को चुनौती देता है, बल्कि गरीब और असहाय मरीजों का भरोसा भी टूटता है। यह मामला केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि सिस्टम की जवाबदेही का है। अगर वीडियो सामने न आता, तो क्या यह मामला दबा दिया जाता? सवाल गंभीर हैं। छतरपुर की यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति पर अत्याचार नहीं, बल्कि एक सिस्टमिक विफलता की तस्वीर है। जरूरी है कि राज्य सरकार इस मामले को मामूली अनुशासनात्मक कार्रवाई तक सीमित न रखे, बल्कि इस तरह की घटनाओं के खिलाफ स्थायी नीति और निगरानी तंत्र विकसित करे। क्या इस देश में एक बुजुर्ग को अपनी पत्नी के इलाज के लिए अपील करना इतना बड़ा अपराध हो गया है कि उसे अस्पताल के फर्श पर घसीटा जाए?
