पटना. जेईई एडवांस में 487 रैंक लाकर केशव राज बिहार के सेकेंड टॉपर बने हैं। उन्होंने यह सफलता बहुत संघर्ष से पाई है। 2013 में केशव के पिता विनय कुमार सिंह की कैंसर से मौत हो गई थी। पिता की मौत के बाद केशव के परिवार के लिए दो वक्त का खाना जुटाना भी मुश्किल हो गया था। एक वक्त ऐसा था जब 6 दिन तक खाना न मिला तो केशव ने पानी पीकर पढ़ाई की। बड़ी बहन रश्मि ने kushagratoday.com से केशव के संघर्ष की कहानी शेयर की। भाई के लिए बहन ने छोड़ दी अपनी पढ़ाई…

– केशव की बहन रश्मि अपने भाई की इस सफलता से बहुत खुश हैं। वह कहती है कि मुझे इस पल का बहुत दिनों से इंतजार था।
– पिता की मौत के बाद तो हम सभी का मनोबल टूट गया था। हमने गांव जाने की तैयारी कर ली थी।
– केशव के सपने टूट गए थे, मुझसे उसका यह दर्द सहा नहीं गया और मैंने पटना में रहकर ही केशव को पढ़ाने का फैसला कर लिया।
कैंसर से हुई थी पिता की मौत
– हमारा परिवार पहले से ही गरीबी में जी रहा था। पिताजी प्राइवेट जॉब कर किसी प्रकार घर चलाते थे।
– पिताजी के कैंसर से हमारे परिवार की हालत और खराब हो गई। घर में जो कुछ था सब उनके इलाज में खर्च हो गया।
– 2013 में पिता की मौत के बाद हमलोग सड़क पर आ गए। घर में कोई कमाने वाला न था। दो वक्त खाना तक नहीं जुट रहा था।
– केशव तब 8वीं में पढ़ रहा था और मैं 12वीं में। पेट भर खाना जुटाने के लिए पैसे न थे तो पढ़ाई कहां से कर पाती।
भाई के सपने के लिए छोड़ दी पढ़ाई
– केशव बचपन से पढ़ने में तेज था। वह पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहता था। पिता की मौत के बाद उसके सपने भी टूटने लगे थे।
– मैं ऐसा कैसे होने देती? मैंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और भाई के सपने को पूरा करने की ठान ली।
– मैंने नौकरी की तलाश की, लेकिन शुरू में कहीं काम नहीं मिला। एक वक्त ऐसा भी था जब 6 दिनों तक घर में खाने को कुछ न था।
– हमलोगों ने 6 दिन पानी पीकर गुजारा किया। केशव ने इस समय में भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। वह पानी पीकर दिन भर पढ़ता रहता था।
कठिन परिश्रम के बाद मिली नौकरी
– जहां भी मुझे पता चलता कि जॉब मिलने की संभावना है मैं ट्राइ करती, लेकिन कुछ दिनों तक मुझे काम नहीं मिला।
– इस कठिन दौड़ में भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। इसी का रिजल्ट था कि मुझे एक प्राइवेट जॉब मिली और घर के लोगों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो सका।
अभयानंद सुपर 30 ने सपने को दी उड़ान
– इसी बीच केशव के एक टीचर पंकज ने हमारी मुलाकात अभयानंद से करवायी। उन्होंने मुझे नौकरी और केशव को अपनी कोचिंग में पढ़ने की अनुमति भी दी।
– यह मेरे अच्छे दिनों की शुरुआत थी। मुझे वेतन के रूप में कुछ ज्यादा पैसा मिलने लगे। वहीं, मेरे भाई के सपने को उड़ान मिली।

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