साइटोकिन स्टॉर्म स्ट्रोम और इंफ़लेमेट्री थ्रोंबोसिस सिंड्रोम कोविड में कुछ प्रमुख लक्षण हैं, जो कि डेंगू में भी देखे गए हैं। दोनों के बीच अंतर करना मुश्किल है, क्योंकि यह एक संवहनी और श्वसन से संबंधित रोग है। डेंगू के संकेतों में लगातार उल्टी आना, यूकोसल रक्तस्राव, सांस लेने में कठिनाई, सुस्ती व बेचैनी, पोस्टुरल हाइपोटेंशन आदि शामिल हैं जबकि, कोविड-19 के लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई, लगातार दर्द या छाती में दबाव, जागने या जागते रहने में असमर्थता, होंठ या चेहरा नीला दिखाई देना आदि शामिल हैं। हालांकि, उक्त लक्षण बीमारी के संकेत के लिए पर्याह्रश्वत नहीं हैं। नैदानिक प्रबंधन जरूरी : दोनों रोगों के लिए नैदानिक प्रबंधन सहायक है। कोविड-19 की देखभाल में मूल रोगी को अन्य लोगों से अलग रखना और ऑ सीजन या वेंटिलेशन की आवश्यकता होती है। डेंगू रोगी के विपरीत कोविड-19 के गंभीर रोगी को जीवित रहने के लिए प्राथमिक चिकित्सा के रूप में स्टेरॉयड और हेपरिन की आवश्यकता होती है। अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों बीमारियों के मरीजों को अलग-अलग तरीकों से सौ प्रतिशत तक स्वस्थ किया जा सकता है। अभी तक दोनों बीमारियों के लिए कोई संतोषजनक टीका उपलब्ध नहीं है। हालांकि, कुछ देशों में डेंगू के टीके को शुरुआती सफलता मिल रही है। हाल ही में स्वास्थ्य चिकित्सा का सारा ध्यान और फंडिंग कोविड-19 के उपचार में लगाया गया है। वे टर नियंत्रण उपायों को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए इसका अत्यधिक महत्व है। बुजुर्ग, गर्भवती महिला, शिशु और पुरानी बीमारी वाली चिकित्सा स्थितियों वाले घरों में शारीरिक तौर से कमजोर सदस्यों को कीट रिपेलेंट्स का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। चूंकि, प्राथमिक देखभाल को डेंगू और कोविड-19 की आशंका वाले व्य ितयों की देखभाल के लिए लाभकारी माना जाता है, इसलिए प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली इसमें आवश्यक घटक है और इसे समय पर उपचार व पर्याप्त नैदानिक प्रबंधन के लिए मजबूत तौर पर तैयार किया जाना चाहिए।
जागरूकता से घटा खतरा : अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एस) ऋषिकेश की ओर से 2019 में शुरू की गई ‘डेंगू सेवन ह्रश्वलसÓ पहल एक अद्वितीय गहन सामुदायिक जागरूकता एवं कार्यान्वयन कार्यक्रम है। यह डेंगू और उसकी अभिव्यक्तियों की सक्रिय निगरानी, समुदाय को अधिक सशक्त तरीके से ज्ञान एवं इस बीमारी के प्रति जागरूक करने, बुखार के मामलों पर नजर रखने, सक्रिय मच्छर प्रजनन स्थलों की पहचान, प्रशिक्षण एवं हितधारकों की क्षमता निर्माण पर आधारित है। डेंगू के मौसम के दौरान गहन जागरूकता अभियान चलाया जाता है। डॉ टर, छात्र, स्वास्थ्य निरीक्षक, स्वास्थ्य पर्यवेक्षक, बायोमेडिकल प्रबंधन प्रतिनिधि व इंजीनियरों की एक बहु-विषयक टीम ने यह अभियान शुरू किया और विभिन्न क्षेत्रों में दौरों को जारी रखा। डेंगू की रोकथाम और नियंत्रण के लिए अन्य उपायों के साथ मिलकर मच्छर प्रजनन स्थलों की पहचान की गई। इस पहल में नगर पालिका, आशा कार्यकर्ता, एएनएम और ऐसे ही अन्य प्रतिनिधियों को भी शामिल किया गया है, जो झुग्गीझोपड ़ी एवं आसपास के इलाकों में डेंगू के बढ़ते खतरे को रोक सकते हैं। इसके परिणाम अत्याधिक उत्साहजनक रहे और इस रोग के मामलों की संख्य में काफी कमी आई है।