आयोडीन की कमी के प्रति सचेत रहना है अतिआवश्यक है। समझें स्वास्थ्य पर आयोडीन का प्रभाव हमारे शरीर में मौजूद थायरॉयड ग्रंथि थायरॉयड हार्मोन का उत्पादन करती है। यह हार्मोन बच्चे की संपूर्ण वृद्धि और मानसिक विकास में अहम भूमिका निभाने के साथ ही हृदय, मस्तिष्क और मांसपेशियों की कार्यप्रणाली नियमित रखने में भी सहायक है। आयोडीन वह पोषक तत्व है, जो शरीर में थायरॉयड बनाने के लिए आवश्यक है। इसकी कमी मृत शिशु के जन्म लेने, कुछ ही दिनों में शिशु की मृत्यु या बच्चे में स्थायी न्यूरोलॉजिकल क्षति का कारण बन जाती है। आहार में आयोडीन की दैनिक मात्रा उम्र पर आधारित होती है, जो गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं में 250 माइक्रोग्राम प्रति दिन से लेकर पांच वर्ष तक के बच्चे में 90 माइक्रोग्राम प्रति दिन तक हो सकती है। आयोडाइज्ड नमक आहार में आयोडीन का सबसे अच्छा स्रोत है। समुद्री आहार, प्याज, शकरकंद और डेयरी उत्पादों के साथ ही आयोडाइज्ड नमक के इस्तेमाल से आयोडीन की कमी और हाइपोथायरॉइडिज्म से होने वाली दिव्यांगता रोक सकते हैं। नवीनतम राष्ट्रीय आयोडीन एवं नमक प्राप्ती सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 25 प्रतिशत भारतीय, खास तौर पर ग्रामीण आज भी अपर्याह्रश्वत आयोडीन वाला नमक खा रहे हैं। नवजात शिशु आयोडीन की पर्याप्त आपूर्ति के लिए मां के दूध पर निर्भर होता है, इसलिए मां के शरीर में आयोडीन की कमी शिशु को प्रभावित कर सकती है और उसे हाइपोथायरॉइडिज्म होने का खतरा हो सकता है। इसके कारण बच्चे में पीलिया, बहुत ज्यादा नींद, क[1]ज आदि लक्षण सामने आते हैं। अक्सर इन पर ध्यान नहीं जाता जिससे समय रहते बीमारी की पहचान और उपचार में देरी हो सकती है। ऐसे में बच्चे के जन्म के तीसरे और पांचवे दिन के बीच रक्त परीक्षण कराना आवश्यक है। आज जिस तरह हम कोविड-19 से सुरक्षा के प्रति सचेत हैं, वैसे ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आयोडीन की कमी सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिहाज से गंभीर समस्या है, जिसका समाधान भी किया जाना चाहिए।
क्यों जरूरी है नमक में आयोडीन
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