बनारस हिंदू विश्वविद्यालय(BHU) के प्रोफ़ेसर रहे फिरोज खान काफी दिनों से इस बात को लेकर चर्चा में हैं कि वह एक मुसलमान होते हुए एक हिंदू प्रोफेसर वह भी संस्कृत के कैसे हो सकते हैं मगर इस बात को सिर्फ धर्म से जोड़कर देखना गलत होगा मगर ऐसा हुआ था प्रोफेसर फिरोज खान बचपन से ही गौ सेवा में लीन रहते हुए उन्होंने संस्कृत में आचार्य की डिग्री प्राप्त की एक मुस्लिम होते हुए भी उन्होंने सारे हिंदू संस्कारों को अपनाते हुए संस्कृत में अपनी शिक्षा कंप्लीट करते हुए वह आचार्य बन गए इस बात का मुसलमानों ने भी विरोध किया कि एक मुसलमान हिंदू कर्मकांड की शिक्षा कैसे ले सकता और कैसे कर सकता है और इसी बात का विरोध बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पढ़ने वाले छात्रों ने भी किया था कि मुस्लिम प्रोफेसर कर्मकांड की शिक्षा कैसे दे सकता है इसका विरोध चलते हुए प्रोफ़ेसर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था मगर इसके बाद भी फिरोज खान ने शास्त्री की शिक्षा से ग्रेजुएशन कंप्लीट किया है इस बात का जिक्र करते हुए सरकार ने इन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा है और सम्मान लेते हुए इनके पिता ने इसका सारा श्रेय संस्कार और गौ सेवा को दिया है इनके पिता ने बताया है कि गौ सेवा से इन्हें ऐसे कर्म की प्रेरणा मिली और आज उनको पद्मश्री सम्मान दिया जा रहा है जिसका वह काफी गर्व महसूस कर रहे हैं
गोसेवा को श्रेय
पद्मश्री मिलने पर मास्टर ने कहा, ‘यह मेरे लिए गर्व की बात है। मेरा परिवार, गांव के लोग और शुभचिंतक इससे बहुत खुश हैं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि पद्मश्री के लिए मुझे चुना जाएगा।’ उन्होंने कहा कि इसका श्रेय गोसेवा को जाता है जो उन्होंने सारी जिंदगी की है। उन्होंने कहा, ‘मैं चंपालाल जी को शुक्रिया कहता हूं जिन्होंने मुझे गोसेवा का रास्ता दिखाया जो राष्ट्र के प्रति सच्ची सेवा है और केंद्र को भी जिसने मुझे यह सम्मान दिया।’
विरोध के बाद फिरोज ने दिया था इस्तीफा
मास्टर ने बताया कि बेटे के अपॉइंटमेंट का वक्त काफी कठिनाई भरा था लेकिन भजन और गोसेवा ने उन्हें उससे निकलने में मदद की जिससे वह दर्द भूल सके। गौरतलब है कि बीएचयू के कुछ छात्रों का कहना था कि किसी मुस्लिम प्रफेसर से हिंदू धर्म के कर्मकांड को सीखना महामना की मंशा को चोटिल करना है। इसे लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद फिरोज ने इस्तीफा दे दिया था।