नंदी के कान में सभी लोग क्या बोलते हैं और इससे क्या होता है?

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शिलाद ऋषि के पितरों ने उनसे वंश बढ़ाने के लिए कहा, शिलाद ऋषि ने भगवान शिव की घोर तपस्या कर के एक अयोनिज और मृत्युहीन पुत्र का वर मांगा।

एक दिन जब शिलाद ऋषि भूमि जोत रहे थे तो उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई उसका नाम उन्होंने नंदी रखा एक दिन ऋषि के आश्रम में मित्रा और वरुण नामक मुनि आये उन्होने कहा ये पुत्र तो अल्पायु है।

ऋषि बहुत दुखी हुए उन्होने नंदी से शिव की आराधना करने को कहा तो शिवजी ने उत्तर दिया तुम मेरे वरदान से उत्पन्न हुए हो तो तुम्हे मृत्यु से कोई भय नही अब तुम मेरे प्रिय गण होंगे और गणाधीश भी होंगे।

नंदी के कान में कहने का मुख्य कारण

भगवान शिव समाधिस्थ रहते है,और बंद आंखों से सम्पूर्ण जगत का संचालन करने का मुख्य कार्य करते है तो नन्दी उनके लिए चैतन्य रूप का कार्य करते है वो उनकी समाधि के बाहर बैठे रहते है,जिससे उनकी समाधि में विघ्न न हो तो भक्त अपनी मनोकामना या समस्या नंदी जी के कान में कह देते है , माना जाता है उनके कान में कही गयी बात शिवजी को अक्षरशः चली जाती है और उस भक्त की समस्या का समाधान या मनोकामना पूर्ति शीघ्रातिशीघ्र हो जाती है।

नंदी के कान में कहने के भी हैं कुछ नियम

नंदी के कान में अपनी मनोकामना करते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपकी कही हुई बात कोई औऱ न सुनें। अपनी बात इतनी धीमें कहें कि आपके पास खड़े व्यक्ति को भी उस बात का पता ना लगे।

नंदी के कान में अपनी बात कहते समय अपने होंठों को अपने दोनों हाथों से ढंक लें ताकि कोई अन्य व्यक्ति उस बात को कहते हुए आपको ना देखें।

नंदी के कान में कभी भी किसी दूसरे की बुराई, दूसरे व्यक्ति का बुरा करने की बात ना कहें, वरना शिवजी के क्रोध का भागी बनना पड़ेगा।

नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहने से पूर्व नंदी का पूजन करें और मनोकामना कहने के बाद नंदी के समीप कुछ भेंट अवश्य रखें। यह भेंट धन या फलों के रूप में हो सकती है।

अपनी बात नंदी के किसी भी कान में कही जा सकती है लेकिन बाएं कान में कहने को अधिक महत्व है।

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