देशभर में बीते तीन साल में सर्वाधिक बच्चे मध्यप्रदेश में लापता हुए हैं। वहीं वयस्क लोगों के लापता होने के मामले में मप्र देश में तीसरे स्थान पर है। 2018 में मप्र में कुल 10,038 नाबालिग लापता हुए। वयस्क वहीं लापता बालिगों की संख्या 42365 थी। इसके अलावा 5282 बच्चे और 37977 इंसान इसके पहले से गायब हैं। एनसीआरबी-2018 के मुताबिक 2012 से 31 दिसंबर 2018 तक मप्र के 6036 बच्चे और 46209 इंसान बेसुराग हैं।
मध्य प्रदेश में बच्चों के लापता होने के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। महज तीन साल में प्रदेश से करीब 23 हजार बच्चे लापता हो चुके हैं, जिनमें 90% लड़कियां हैं। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, सीएम कमलनाथ के क्षेत्र छिंदवाड़ा में ऐसे मामले सबसे ज्यादा हैं।
ये ना तो अपने गांव–शहर लौटकर आए और न ही इनके कहीं और होने की जानकारी लगी है। बावजूद इसके मप्र में अलग से एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) का गठन नहीं हो सका है। खानापूर्ति के तौर पर प्रदेश में एक डीएसपी को अतिरिक्त जिम्मेदारी के तौर पर एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट का प्रभारी बनाया गया है। गौरतलब है कि पड़ोसी राज्य राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र, यूपी और दिल्ली समेत तमाम राज्य बच्चों और महिलाओं की तस्करी और गुमशुदगी के मामलों को रोकने के लिए अलग से एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट का गठन कर चुके हैं। कई राज्यों में अलग से एनएचटीयू थाने भी खोले गए हैं, लेकिन मप्र में अब तक न तो एक भी एएचयू थाना बना और न ही अलग से मॉनिटरिंग सेल गठन हो पाई।
जांच के बाद पुलिस ने माना 2018 में 105 लोग हुए थे ट्रैफिकिंग के शिकार : एनसीआईबी के मुताबिक 2018 में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के 63 केस दर्ज किए गए। वहीं 105 लोग ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार हुए। इनमें से 73 नाबालिग और 32 बालिग थे। पुलिस ने 72 नाबालिगों और 28 बालिगों को बरामद करने में सफलता भी पाई थी। मप्र में 32 को बंधुआ मजदूरी के लिए और 27 को जबरन शादी के लिए खरीदा–बेचा गया था। 5 को वैश्यावृत्ति के लिए और 1 को स्थानीय स्तर पर दास बनाने के लिए इसका शिकार होने पड़ा।